| छेडियल्या तारा हे गीत येईना जुळून ! फुलते ना फूल तोच जाय पाकळी गळून ! आकारून येत काहि विरते निमिषात तेहि स्वप्नचित्र पुसुनि जाय रंग रंग ओघळून ! क्षितिजाच्या पार दूर मृगजळास येइ पूर लसलसते अंकुर हे येथ चालले जळून ! | ||
| गीत | - | शांता शेळके |
| संगीत | - | पं. जितेंद्र अभिषेकी |
| स्वर | - | पं. वसंतराव देशपांडे |
| नाटक | - | हे बंध रेशमाचे (१९७२) |
| राग | - | मिश्र मांड (नादवेध) |
Saturday, February 07, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)

No comments:
Post a Comment